दैनिक डायरी लिखने से विचारों में स्पष्टता आती है। यदि सब दोषों की सूची हमारे सामने रहे तो उन्हें दूर करने में मन लगा रहता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन ने आत्म सुधार का यही साधन अपनाया था।
प्रतिदिन वे जो कुछ उत्तम या निकृष्ट कार्य करते थे, रात्रि में उसे अपनी डायरी में दर्ज करते थे। निकृष्ट कार्य पर विक्षोभ प्रकट करते थे और भविष्य में पुनरावृत्ति न करने की प्रतिज्ञा और दृढ संकल्प करते थे।
वे अपने आलस्य, प्रमाद, क्रोध, वासना आदि के लिए आत्मग्लानि प्रकट करते तथा आगे इन दुर्गुणों में न पड़ने का सद्संकल्प किया करते थे। सन्मार्ग का अवलम्बन तथा निकृष्ट से सम्बन्ध विच्छेद करते-करते अन्ततः उन्होंने आत्म सुधार में अच्छी प्रगति की थी।
वे अपने मन का अध्ययन और चंचलता दूर कर सके थे। अन्य महापुरुषों ने भी डायरी लिखना सदा जारी रखा है। हमारे सद्गुण और दुर्गुण मन के विभिन्न कोनों में छिपे रहते हैं। मन के ये विकार बढ़ जाने से हमें भ्रष्ट करते हैं।
तनिक सा प्रोत्साहन पाकर ये उभर उठते हैं। छिप कर विकसित होने की प्रतीक्षा किया करते हैं। यदि हम इनका दमन न करें तो हमें सदा यह भय रहता है कि न मालूम कब, किन परिस्थितियों में विकसित होकर हमें पतित कर देंगे।
इन्हें बार-बार मारने, चाबुक से पीटने, नियंत्रित करने और सत्पथ पर अग्रसर होने हेतु डायरी अमूल्य साधन हैं। इसके द्वारा हमारे दुष्ट मनोविकारों का क्षय और सद्गुणों का विकास होता है।
डायरी हमारे समय, विचारों, मानसिक संघर्ष और कार्यों की आलोचना हैं, अच्छे- बुरे का विवेचन हैं। बुरे पर पाश्चाताप और अच्छे पर सन्तोष की अभिव्यंजना है।
हम स्वयं अपने दोषों को परखने वाले, गलतियों पर अपने को ताड़ने वाले और सद्गुणों का विकास करने वाले होते हैं। हम दोषों को दूसरों से कहते हैं अथवा लिखते हैं, तो हममें उनसे बचने की प्रवृत्ति दृढ़ होती है।
हम अपनी लेखनी से उनसे बचने की प्रवृत्ति प्रकट करते हैं। दोषों से मुक्त होकर उच्चतर जीवन की अभिलाषा प्रकट करते हैं। गलतियों के लिए हार्दिक पाश्चाताप करते हैं। स्वयं अपने आप ही अपने से सान्त्वना और मन शान्ति प्राप्त करते हैं।